प्राकृतिक खेती (Natural Farming): टिकाऊ कृषि और स्वस्थ भविष्य की दिशा

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 जानिए प्राकृतिक खेती (Natural Farming) क्या है, इसके सिद्धांत, विधियाँ, फायदे और भारत में इसका महत्व। शून्य बजट खेती के जरिए किसान कैसे बढ़ा रहे हैं अपनी आय।


प्रस्तावना

आज के समय में जब कृषि क्षेत्र में रासायनिक खाद और कीटनाशकों का उपयोग तेज़ी से बढ़ गया है, इसका असर न केवल मिट्टी की उर्वरता पर पड़ा है बल्कि पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर भी गहरा प्रभाव दिखने लगा है। किसानों की लागत लगातार बढ़ रही है और मिट्टी बंजर होती जा रही है।
इन्हीं समस्याओं का स्थायी समाधान है प्राकृतिक खेती (Natural Farming)। यह खेती का ऐसा तरीका है जो पूरी तरह से प्रकृति पर निर्भर करता है, रासायनिक इनपुट्स से मुक्त होता है और मिट्टी को पुनर्जीवित करने में मदद करता है।

                                                                           

Indian farmer practicing natural farming in paddy fields with cows and organic compost under morning sunlight.

प्राकृतिक खेती क्या है?

प्राकृतिक खेती एक ऐसी कृषि पद्धति है जिसमें किसी भी प्रकार के रासायनिक खाद, कीटनाशक या सिंथेटिक उर्वरकों का उपयोग नहीं किया जाता। किसान केवल प्राकृतिक संसाधनों — जैसे गोबर, गोमूत्र, पौधों की पत्तियाँ, खेत में उपलब्ध अवशेष और जैविक सूक्ष्मजीवों — का ही उपयोग करते हैं।

इस खेती में बाहरी बाजार से कुछ भी खरीदने की आवश्यकता नहीं होती, इसलिए इसे शून्य बजट प्राकृतिक खेती (Zero Budget Natural Farming - ZBNF) भी कहा जाता है।

 भारत में इस विचार को सबसे अधिक लोकप्रिय बनाया गया है प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक Subhash Palekar ने।


प्राकृतिक खेती के प्रमुख सिद्धांत (Core Principles of Natural Farming)

प्राकृतिक खेती चार मुख्य सिद्धांतों पर आधारित है:

1. जीवामृत (Jeevamrit)

यह एक तरल खाद है जो गोबर, गोमूत्र, गुड़ और बेसन जैसे प्राकृतिक तत्वों से तैयार किया जाता है। यह मिट्टी में सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या बढ़ाता है और फसल की वृद्धि में मदद करता है।

2. बीजामृत (Beejamrit)

बीज को बोने से पहले उपचारित करने के लिए यह प्राकृतिक घोल उपयोग में लाया जाता है। इससे बीज रोगों और कीटों से सुरक्षित रहते हैं।

3. आच्छादन (Mulching)

मिट्टी को ढककर रखना ताकि उसकी नमी और तापमान संतुलित रहे। यह खरपतवार को भी नियंत्रित करता है।

4. वफ्सा (Wapsa)

यह सिद्धांत मिट्टी में हवा और पानी के संतुलन पर आधारित है। उचित नमी और ऑक्सीजन से फसलें तेजी से बढ़ती हैं।


प्राकृतिक खेती की विधियाँ (Methods of Natural Farming)

1. जैविक खाद का उपयोग

  • गोबर खाद और वर्मी कम्पोस्ट

  • खेत में उत्पन्न पत्तियों और जैविक अवशेषों का पुन: उपयोग

2. प्राकृतिक कीटनाशक

  • नीम का तेल, लहसुन और मिर्च से बने स्प्रे

  • कीटों को फँसाने वाली फसलें (ट्रैप क्रॉपिंग)

3. फसल चक्र और मिश्रित खेती

  • एक ही खेत में अलग-अलग मौसम में विभिन्न फसलें उगाना

  • साथ-साथ कई प्रकार की फसलें लगाकर जोखिम को कम करना

4. जल संरक्षण तकनीक

  • कम सिंचाई की जरूरत

  • वर्षा जल संचयन और मिट्टी की नमी बनाए रखना


प्राकृतिक खेती के फायदे (Benefits of Natural Farming)

किसानों के लिए लाभ

  • कम लागत: बाहर से रासायनिक खाद या कीटनाशक खरीदने की आवश्यकता नहीं।

  • अधिक मुनाफा: फसलों का बाजार मूल्य अधिक मिलता है क्योंकि वे रसायन-मुक्त होती हैं।

  • दीर्घकालिक लाभ: मिट्टी लंबे समय तक उपजाऊ बनी रहती है।

  •  पर्यावरण के लिए लाभ

  • मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार: सूक्ष्मजीवों की संख्या बढ़ती है।

  • जल प्रदूषण नहीं: रासायनिक अपशिष्टों का रिसाव नहीं होता।

  • जैव विविधता का संरक्षण: पक्षियों, कीड़ों और जीवों का प्राकृतिक संतुलन बना रहता है।

 उपभोक्ताओं के लिए लाभ

  • स्वास्थ्यवर्धक भोजन: रसायन-मुक्त और पौष्टिक अनाज, फल और सब्ज़ियाँ।

  • दीर्घकालिक स्वास्थ्य लाभ: कीटनाशकों से होने वाली बीमारियों का खतरा कम।



बिंदु प्राकृतिक खेती जैविक खेती
खाद खेत से प्राप्त स्थानीय संसाधन बाजार से खरीदी गई जैविक खाद भी उपयोग में
लागत बहुत कम (शून्य बजट) अपेक्षाकृत अधिक
इनपुट्स पूरी तरह प्राकृतिक जैविक रूप से स्वीकृत इनपुट्स
उत्पादन धीरे-धीरे बढ़ता है आरंभ में ही अच्छा

                                                                             
Organic vegetables like tomatoes, carrots, and spinach harvested from a natural farm in an eco-friendly bamboo basket.

प्राकृतिक खेती की चुनौतियाँ (Challenges in Natural Farming)

  • शुरुआती 1-2 साल में उत्पादन थोड़ा कम हो सकता है।

  • किसानों में अभी भी जागरूकता की कमी है।

  • मार्केटिंग चैनल और सप्लाई चेन की समस्या।

  • प्रमाणन प्रक्रिया अभी भी जटिल है।


सरकार और संगठनों की भूमिका

भारत सरकार प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएँ चला रही है:

  • भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति (BPKP) – किसानों को प्रशिक्षण और सहायता।

  • विभिन्न राज्यों जैसे Andhra Pradesh और Himachal Pradesh में बड़े स्तर पर प्राकृतिक खेती अपनाई जा रही है।

  • फसल बीमा और सब्सिडी जैसी सुविधाएँ भी दी जा रही हैं।



भविष्य और संभावनाएँ

भारत में स्वास्थ्य और पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ रही है, जिससे प्राकृतिक खेती की माँग तेज़ी से बढ़ रही है। इसके ज़रिए भारत न केवल खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है बल्कि वैश्विक स्तर पर जैविक और प्राकृतिक उत्पादों का प्रमुख निर्यातक भी बन सकता है।
किसानों के लिए यह खेती आत्मनिर्भरता, लागत में कमी और दीर्घकालिक लाभ का रास्ता खोलती है।


निष्कर्ष

प्राकृतिक खेती केवल एक खेती तकनीक नहीं है, यह एक जीवन दर्शन है। यह हमें प्रकृति के साथ सामंजस्य में रहकर खेती करने की शिक्षा देती है। इससे मिट्टी, पानी और हवा सभी का संरक्षण होता है और आने वाली पीढ़ियों के लिए टिकाऊ कृषि प्रणाली तैयार होती है।
यदि किसान और सरकार मिलकर इसे बड़े स्तर पर अपनाएँ, तो भारत एक बार फिर कृषि में विश्वगुरु बन सकता है।


FAQ – प्राकृतिक खेती से जुड़े आम सवाल

1. प्राकृतिक खेती क्या है?

प्राकृतिक खेती एक ऐसी कृषि प्रणाली है जिसमें कोई रासायनिक खाद या कीटनाशक इस्तेमाल नहीं किए जाते और खेत में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का ही उपयोग होता है।

2. क्या प्राकृतिक खेती में उत्पादन कम होता है?

शुरुआती 1-2 साल में उत्पादन थोड़ा कम हो सकता है, लेकिन बाद में मिट्टी की उर्वरता बढ़ने पर उत्पादन स्थिर और बेहतर हो जाता है।

3. क्या प्राकृतिक खेती महंगी है?

नहीं, प्राकृतिक खेती शून्य बजट पर भी की जा सकती है क्योंकि इसमें बाहर से कुछ खरीदने की आवश्यकता नहीं होती।

4. प्राकृतिक खेती और जैविक खेती में क्या अंतर है?

प्राकृतिक खेती पूरी तरह स्थानीय संसाधनों पर आधारित होती है, जबकि जैविक खेती में बाजार से खरीदे गए जैविक उत्पाद भी इस्तेमाल किए जा सकते हैं।

5. क्या सरकार प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देती है?

हाँ, भारत सरकार और राज्य सरकारें कई योजनाओं, प्रशिक्षण कार्यक्रमों और सब्सिडी के माध्यम से प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित कर रही हैं।

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