Bhartiya Prakritik Krishi Paddhati (BPKP): जीरो बजट और प्राकृतिक खेती की क्रांति

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  भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति (बीपीकेपी) भारत सरकार की एक योजना है, जो जैविक खेती और शून्य लागत खेती को बढ़ावा देती है। जानें इसके लाभ, परंपरागत तरीकों, और किसान इस योजना से कैसे लाभ उठा सकते हैं।

परिचय:

भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति (बीपीकेपी) क्या है?

प्राकृतिक खेती की ओर वापसी 

भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति (बीपीकेपी) एक सरकारी योजना है, जिसे वर्ष 2020 में राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) के अंतर्गत आरंभ किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य है:

  • रसायन मुक्त खेती को बढ़ावा देना

  • मिट्टी की उर्वरता को सुधारना

  • किसानों की खेती लागत को न्यूनतम करना

  • पारंपरिक देसी ज्ञान को पुनः जीवित करना

इस योजना में मुख्य रूप से शून्य लागत प्राकृतिक खेती (ZBNF) को अपनाने पर ज़ोर दिया गया है, जिसमें किसान बिना किसी बाहरी रासायनिक खाद या कीटनाशक के, केवल देसी संसाधनों से खेती करता है।

यह मॉडल आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में तेज़ी से फैल रहा है, जहाँ लाखों किसान प्राकृतिक खेती से लाभ कमा रहे हैं।

                                                                                  

एक भारतीय किसान प्राकृतिक तरीके से खेती करते हुए, गाय, गोबर और हरियाली के बीच बीपीकेपी योजना के अंतर्गत जैविक खाद का उपयोग करते हुए

बीपीकेपी का मुख्य उद्देश्य

1. रासायनिक खेती से मुक्ति

आज भी भारत में अधिकतर किसान रासायनिक खाद और कीटनाशक का उपयोग करते हैं, जिससे मिट्टी की सेहत बिगड़ती है और जल स्रोत जहरीले हो जाते हैं। बीपीकेपी इसका टिकाऊ समाधान प्रस्तुत करती है।

2. किसानों की लागत घटाना

बीज, खाद, दवाई – ये तीन मुख्य खर्च होते हैं खेती में। बीपीकेपी में ये सभी संसाधन खेत से ही प्राप्त होते हैं, जिससे बाहर से खरीदने की ज़रूरत नहीं रहती।

3. पर्यावरण और स्वास्थ्य की रक्षा

प्राकृतिक खेती से न केवल मिट्टी और पानी सुरक्षित रहता है, बल्कि उपजाया गया अन्न भी शुद्ध और पौष्टिक होता है। यह योजना एक स्थायी कृषि व्यवस्था तैयार करती है।

बीपीकेपी के चार मूल तत्व

1. बीज उपचार – बीजामृत

बीजामृत एक देसी विधि है जिससे बीजों को रोगों से बचाया जाता है। इसमें देसी गाय का मूत्र, गोबर, नीम की पत्तियाँ, हींग आदि मिलाकर प्रयोग किया जाता है।

2. जैविक खाद – जीवामृत

जीवामृत एक तरल जैविक खाद है, जो मिट्टी में लाभकारी जीवाणुओं को बढ़ाता है और फसल की पैदावार को बिना रसायन के बढ़ाता है।

3. मल्चिंग (आवरण देना)

मिट्टी को सूखे पत्तों, घास या खेत के बचे अवशेषों से ढक देना ताकि नमी बनी रहे और जीवाणु जीवित रहें।

4. वापसा (नमी संतुलन)

वापसा का मतलब है मिट्टी में उचित मात्रा में नमी और हवा का संतुलन बनाए रखना। इससे कम सिंचाई में भी फसल अच्छे से बढ़ती है।

योजना का लाभ किन्हें मिलेगा?

पात्र लाभार्थी

बीपीकेपी योजना का लाभ उन किसानों को मिल सकता है:

  • जो रासायन मुक्त खेती करना चाहते हैं

  • जो जैविक उत्पाद बेचकर अच्छा मूल्य पाना चाहते हैं

  • जो देसी तरीके अपनाना चाहते हैं

इसमें छोटे किसान, महिला समूह, किसान उत्पादक संगठन (FPO) आदि शामिल हैं।

पात्रता की शर्तें

  • ग्राम पंचायत के भू-भाग में होना

  • अपनी ज़मीन या पट्टे पर ली गई ज़मीन पर खेती करना

  • गाय, गोबर, मूत्र जैसे संसाधनों तक पहुँच होना

बीपीकेपी के प्रमुख लाभ

  1. लागत में 60–90% तक की बचत – बीज, खाद, दवा सब खेत से प्राप्त होते हैं।

  2. मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार – जीवाणुओं की वृद्धि से मिट्टी फिर से जीवित होती है।

  3. फसल में पोषक तत्वों की मात्रा अधिक होती है – जिससे बाज़ार में बेहतर मूल्य मिलता है।

  4. प्रदूषण में कमी आती है – न पानी खराब होता है न हवा।

  5. बाज़ार में मांग अधिक – जैविक प्रमाणन के बाद शुद्ध उपज की माँग शहरों में अधिक होती है।

सरकार का सहयोग

वित्तीय सहायता

  • प्रशिक्षण और प्रदर्शन खेत के लिए ₹50,000 प्रति हेक्टेयर तक सहायता।

  • जैविक खाद बनाने के लिए सहायता राशि।

  • कृषि विज्ञान केंद्र के माध्यम से निरंतर सहायता।

संस्थागत सहयोग

  • कृषि विज्ञान केंद्र (KVK)

  • राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र

  • आरकेवीवाई के अंतर्गत समूह आधारित कार्य योजना

योजना की प्रगति

वर्षराज्यों की संख्यालाभार्थी किसानक्षेत्रफल (हेक्टेयर में)

2021 | 8 राज्य4 लाख+ | 3.9 लाख+

2023 | 12 राज्य10 लाख+ | 10 लाख+

प्रमुख राज्य:

आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, ओडिशा, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड

सफलता की कहानी – "हिमाचल का जैविक किसान"

नाम: रमेश ठाकुर, मंडी (हिमाचल प्रदेश)
विवरण: 3 हेक्टेयर में प्राकृतिक खेती
लाभ:

  • ₹60,000 प्रति हेक्टेयर वार्षिक लाभ

  • सब्जियाँ शिमला और चंडीगढ़ में बिकती हैं

  • खेत से ही सारा उत्पादन – कोई बाहरी खर्च नहीं

यह उदाहरण दर्शाता है कि छोटे किसान भी बीपीकेपी से बड़ा लाभ पा सकते हैं।

बीपीकेपी से कैसे जुड़ें?

चरणबद्ध प्रक्रिया

  1. अपने राज्य के कृषि विभाग में संपर्क करें

  2. निकटतम कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) में आवेदन करें

  3. प्रशिक्षण प्राप्त करें

  4. योजना का लाभ लेने के लिए पंजीकरण कराएं

निष्कर्ष 

भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति (बीपीकेपी) केवल एक योजना नहीं, बल्कि एक आंदोलन है, जो लाखों किसानों को प्रकृति की ओर लौटा रहा है। कम लागत, अधिक लाभ और पर्यावरण की रक्षा – यही इस योजना का मूल उद्देश्य है।

इस योजना से किसान न केवल आमदनी बढ़ा सकते हैं, बल्कि देश में पोषण, जल सुरक्षा और ग्रामीण विकास में भी सहयोग कर सकते हैं।

आइए, मिलकर प्रकृति आधारित खेती से एक नया भारत बनाएं!

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