जलीय कृषि के विभिन्न प्रकारों का अन्वेषण करें जैसे कि मछली, झींगा, केकड़ा और समुद्री शैवाल की खेती। भारत और विश्व स्तर पर सतत जलीय कृषि के लिए विधियाँ, लाभ और व्यापारिक संभावनाएँ जानें।
परिचय
जलीय कृषि या एक्वाफार्मिंग का अर्थ है जलजीवों की नियंत्रित परिस्थितियों में वाणिज्यिक, खाद्य या सजावटी उद्देश्यों के लिए खेती। इसमें मछली, शंख, क्रस्टेशियन और जल पौधों की खेती शामिल होती है। यह पारंपरिक मछली पकड़ने से भिन्न है, जो जंगली भंडार पर निर्भर करता है, जबकि जलीय कृषि स्थायी और पूर्वानुमेय उत्पादन प्रदान करती है।
"Aquaculture" शब्द लैटिन शब्दों aqua (पानी) और cultura (खेती) से लिया गया है। इसकी उत्पत्ति प्राचीन चीन और मिस्र से हुई थी जहाँ मछली पालन के लिए तालाबों का उपयोग होता था।
आज, जलीय कृषि वैश्विक समुद्री खाद्य आपूर्ति का 50% से अधिक योगदान देती है। भारत इस क्षेत्र में दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है, जिसमें सालाना 7 मिलियन मीट्रिक टन से अधिक उत्पादन होता है। मुख्य रूप से यह उत्पादन अंतर्देशीय मीठे पानी की खेती के माध्यम से होता है।
बढ़ती प्रोटीन मांग, घटते जंगली मछली संसाधन, ग्रामीण आजीविका समर्थन और समुद्री उत्पादों के निर्यात की विशाल संभावनाओं के कारण भारत को जलीय कृषि की अत्यधिक आवश्यकता है।
जलीय कृषि का महत्व
जलीय कृषि वैश्विक खाद्य प्रणाली को आकार देने, ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं को मजबूत करने और समुद्री जैव विविधता की रक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन का सुलभ और टिकाऊ स्रोत प्रदान कर खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करती है। बढ़ती जनसंख्या के साथ, जलीय कृषि पोषण अंतर को भरती है। रोहू, कतला और तिलापिया जैसी मछलियाँ भारत के कई हिस्सों में मुख्य प्रोटीन स्रोत हैं।
यह रोजगार सृजन में भी सहायक है—हैचरी से लेकर हार्वेस्ट और प्रोसेसिंग तक। भारत के मत्स्य मंत्रालय के अनुसार, 1.4 करोड़ से अधिक लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जलीय कृषि से जुड़े हैं।
यह निर्यात के माध्यम से देश के जीडीपी में भी योगदान देती है। भारत हर साल 1.4 मिलियन मीट्रिक टन से अधिक समुद्री उत्पादों का निर्यात करता है, जिसमें से 70% से अधिक केवल झींगा निर्यात होता है।
जलीय कृषि के वर्गीकरण और प्रकार
जलीय कृषि के विभिन्न प्रकार निम्नलिखित हैं, जो भारत के विभिन्न राज्यों में अपनाए जाते हैं:
मछली पालन
भारत में सबसे प्रचलित जलीय कृषि प्रकार है। इसमें रोहू, कतला, मृगाल, ग्रास कार्प, तिलापिया और पंगासियस जैसी मछलियों को पाला जाता है। उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा और बंगाल में यह आम है। अब टैंक, तालाब, पिंजरे और आरएएस (री-सर्कुलेटिंग एक्वाकल्चर सिस्टम) जैसी तकनीकों का प्रयोग बढ़ रहा है।
झींगा पालन
विशेष रूप से आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में बहुत तेजी से विकसित हुआ है। सफेद झींगा (Litopenaeus vannamei) की खेती अत्यधिक लाभदायक है। निर्यात के लिए इसकी अत्यधिक मांग है। इसका पालन आमतौर पर इनलैंड साल्ट वॉटर तालाबों में किया जाता है।
केकड़ा पालन
मड क्रैब (Scylla serrata) का पालन बंगाल और उड़ीसा के तटीय क्षेत्रों में किया जाता है। इसके लिए पेन, पिंजरे या मैंग्रोव क्षेत्रों का उपयोग होता है। केकड़ा व्यापार उच्च मूल्य का है और इसके मांस की अंतरराष्ट्रीय बाजार में मांग है।
शंख उत्पादन
ऑयस्टर, मसल्स और क्लैम की खेती केरल, गोवा और महाराष्ट्र में की जाती है। राफ्ट, रैक और बॉटम कल्चर तकनीक अपनाई जाती है। ये जीव जल को स्वच्छ रखने में भी मदद करते हैं और पर्यावरण के लिए फायदेमंद होते हैं।
समुद्री शैवाल खेती
कप्पाफिकस, ग्रेसिलेरिया और उल्वा जैसी प्रजातियाँ गुजरात और तमिलनाडु में उगाई जाती हैं। इसका उपयोग फूड इंडस्ट्री, फर्टिलाइज़र, कॉस्मेटिक्स और दवाओं में होता है। भारत सरकार अब इस पर अधिक सब्सिडी भी प्रदान कर रही है।
समेकित बहु-पोषणीय जलीय कृषि (IMTA)
इसमें मछली, शंख और समुद्री शैवाल को एक साथ एक इकाई में उगाया जाता है जिससे पोषक तत्वों का पुनः उपयोग हो सके। यह एक पर्यावरण अनुकूल और सतत प्रणाली है।
सजावटी मछली पालन
गोल्डफिश, गप्पी, मोल्ली, बेट्टा जैसी सजावटी मछलियाँ महाराष्ट्र, बंगाल और केरल में पाली जाती हैं। इनका निर्यात जापान और यूरोप को किया जाता है।
पुनरावर्ती जलीय कृषि प्रणाली (RAS)
यह एक आधुनिक प्रणाली है जिसमें पानी को पुनः उपयोग किया जाता है और एक सीमित स्थान में अधिक उत्पादन किया जा सकता है। यह नगरीय क्षेत्रों में लोकप्रिय हो रही है।
समुद्री खेती (Mariculture)
समुद्री जल में मछली, शंख, समुद्री शैवाल आदि की पिंजरे या पेन में खेती की जाती है। यह गोवा, लक्षद्वीप और अंडमान निकोबार में विकसित की जा रही है।
पेन और पिंजरा प्रणाली
झीलों और नदियों में लोहे या प्लास्टिक के पिंजरों के अंदर मछली पालन किया जाता है। इसमें बहुत कम भूमि की आवश्यकता होती है और इसका रखरखाव भी आसान है।
हैचरी आधारित पालन
बीज उत्पादन के लिए हैचरी का उपयोग किया जाता है। यह पूरे वर्ष गुणवत्ता युक्त बीज की आपूर्ति सुनिश्चित करता है।
खारे जल की जलीय कृषि
झींगा और सीबास जैसी प्रजातियों के लिए उपयुक्त। आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और ओडिशा में प्रचलित।
एक्वापोनिक्स
मछली पालन और हाइड्रोपोनिक खेती का संयुक्त रूप। मछलियों के अपशिष्ट को पौधों के लिए खाद के रूप में प्रयोग किया जाता है। शहरी क्षेत्रों में प्रचलन में है।
बायोफ्लॉक तकनीक
जल में मौजूद कार्बन और नाइट्रोजन को संतुलित कर सूक्ष्मजीवों द्वारा फ्लोक्स का निर्माण किया जाता है जिसे मछलियाँ खा सकती हैं। इससे चारे की लागत कम होती है।
बहुप्रजातीय पालन (Polyculture)
एक ही तालाब में एक से अधिक मछली प्रजातियों का पालन। इससे तालाब की उपयोगिता और उत्पादन बढ़ता है।
भारत सरकार का सहयोग
भारत सरकार ने PMMSY (प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना), मत्स्य क्रेडिट कार्ड, ब्लू रेवोल्यूशन, मरीन फिशरीज सब्सिडी जैसी योजनाएं शुरू की हैं। इससे किसानों को प्रशिक्षण, अनुदान और ऋण मिलता है। राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड (NFDB) भी तकनीकी सहायता प्रदान करता है।
जलीय कृषि की चुनौतियाँ
उच्च गुणवत्ता वाले बीज और चारे की अनुपलब्धता
जलजनित रोगों का प्रसार
किसानों में तकनीकी ज्ञान की कमी
मौसमीय परिवर्तन का प्रभाव
मार्केटिंग और मूल्य में उतार-चढ़ाव
जलीय कृषि का भविष्य
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित स्मार्ट फीडिंग और निगरानी प्रणाली
ब्लॉकचेन द्वारा ट्रेसबिलिटी
जैविक और सर्टिफाइड जलीय उत्पादों की बढ़ती मांग
शहरी कृषि के लिए कंटेनर आधारित आरएएस प्रणाली
महिलाओं और युवाओं की भागीदारी में वृद्धि
निष्कर्ष
जलीय कृषि भारत के किसानों के लिए एक सुनहरा अवसर है। विविध प्रकार, सरकारी समर्थन और तकनीकी नवाचारों के कारण यह क्षेत्र दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। यदि सही प्रशिक्षण, पूंजी और मार्गदर्शन मिले, तो यह न केवल आय का स्रोत बनेगा बल्कि भारत की खाद्य सुरक्षा में भी एक मजबूत स्तंभ सिद्ध होगा।
अब समय है, जब किसान जल की शक्ति को पहचानें और जलीय कृषि के माध्यम से नई ऊँचाइयाँ छूएं।
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